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Wednesday, April 29, 2020

सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो . . .

तुम यूँ रूठो तो मनाना हमें भी आता है
जानेमन , थोड़ा गुस्सा तो कम करो रूठना हमें भी आता है |
सुनो अरसे से तुमने कुछ खाया नहीं,
बस एक निवाला खा लो मेरा निवाला भी अब गले से उतरता नहीं |
सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

सुनो फायदा ना उठाओ हमारी इस मोहब्बत का ,
हर वक़्त तुम जो नाटक करती हो रूठने -मनाने का |
कभी -कभी तुम्हारा रूठना भी अच्छा लगता है ,
पास आने का बहाना जो मिलता है |
सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

तेरी हंसी भी बड़ी अच्छी लगती है ,
इतने अरसे के बाद जो तू हसती है |
तेरा हसीन सा चेहरा भी कितना प्यारा है ,
जिस पर सारा मोहल्ला फिरता मारा -मारा है |
तुम इस तरह से कमर मटकाकर ना चला करो ,
यूँ ही आशिक बहुत है तुम्हारे ,मत  उनको और आशिकाना बनाया करो |
सुनो फिर तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

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