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Monday, May 25, 2020

Bittu Mahima

सोते हुए तू हँसती है ,जागते हुए तू रोती है
आँखे तेरी टूक-टूक देखा करती ,जब घड़ी में रात के 2-बज रही होती है | 
दिन हो या रात मम्मी-नानी तेरी सुसु पोटी धोती है | 
रात में उनकी पलक झपकती नहीं ,दिन में वो सो पाती नहीं | 
कभी तुझको नहला देती , कभी पानी का पोछा लगा देती | 
आँखों में नींद ऊपर से आधी रात ,सेवा तेरी करती वो रात-बेरात |
तेरी एक  छोटी सी रोने की आवाज ,सबको जगने का देती आगाज | 
बिस्तर में तू रोने लगती , गोद में तू महारानी की तरह सोती | 

5-महीने की नन्ही बालक, मम्मी बोलती बिट्टू है बड़ी चालाक | 
बड़ी होकर होशियार बनेगी , दुनिया में हमारा नाम रोशन करेगी | 
खुद से तू चलने की कोशिश करती , 2 -4 कदम आगे भी रखती | 
जब तिनके के सहारे खड़ी हो जाती , खुशियों से तू फूला ना समाती | 

Wednesday, April 29, 2020

सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो . . .

तुम यूँ रूठो तो मनाना हमें भी आता है
जानेमन , थोड़ा गुस्सा तो कम करो रूठना हमें भी आता है |
सुनो अरसे से तुमने कुछ खाया नहीं,
बस एक निवाला खा लो मेरा निवाला भी अब गले से उतरता नहीं |
सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

सुनो फायदा ना उठाओ हमारी इस मोहब्बत का ,
हर वक़्त तुम जो नाटक करती हो रूठने -मनाने का |
कभी -कभी तुम्हारा रूठना भी अच्छा लगता है ,
पास आने का बहाना जो मिलता है |
सुनो तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

तेरी हंसी भी बड़ी अच्छी लगती है ,
इतने अरसे के बाद जो तू हसती है |
तेरा हसीन सा चेहरा भी कितना प्यारा है ,
जिस पर सारा मोहल्ला फिरता मारा -मारा है |
तुम इस तरह से कमर मटकाकर ना चला करो ,
यूँ ही आशिक बहुत है तुम्हारे ,मत  उनको और आशिकाना बनाया करो |
सुनो फिर तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो. . . . . . . . . . . . . . .

Saturday, April 25, 2020

SUNO TUMHE YAAD HE NA WO DIN

सुनो तुम्हे याद है ना वो दिन
लोनावला गये थे हम एक दिन
भुशी डैम पर सांथ बिताये थे सुकून के पल
सोच रहा था ये समय यही थम जाए अब ना हो कल
दूर दूर तक पानी दिख रहा था
ये नजारा हमसे कुछ कह रहा था
आ थामलू हाथ तेरा पानी में उतरने का मन कर रहा था
सुनो तुम्हे याद है ना वो दिन.. . . . . . . . . . . . . . . . .

टाइगर पॉइंट का वो खूबसूरत नजारा
जी कर रहा था रोज आये हम यहाँ दोबारा
वो तेज ठंडी हवा
तेरी उड़ती हुई जुल्फे थी इसका गवा
सुनो तुम्हे याद है ना वो दिन.. . . . . . . . . . . . . . . . .

रायवूड पार्क में चारो तरफ हरियाली
जैसे यही हो कुल्लू और मनाली
तुम्हारे हाथ का दोपहर का खाना
फिर कहीं और क्यों जाना
कोई पेड़ छूटा नहीं जहा हमने फोटो लिया नहीं
कैमरे की मेमोरी फूल होती नहीं , हम शूटिंग बंद करते नहीं
सुनो तुम्हे याद है ना वो दिन.. . . . . . . . . . . . . . . . .

यहाँ बिताये हुए पल को मेने दिल में उतार लिया
हर सांसो पे उन पलों का नाम रख दिया
जब भी अकेले में तेरी याद सताती है
ये साँस उन्ही पलों को जीना चाहती है
सुनो तुम्हे याद है ना वो दिन.. . . . . . . . . . . . . . . . .




Saturday, April 11, 2020

बैठे थे हम थामकर दिल को , इन्तजार था बिटिया के आने का सबको

मेरी बिटिया के नाम पर ये सबसे पहली कविता है , बहुत देरी से लिख रहा हु इसलिए बिटिया से माफ़ी माँगता हूँ

बैठे थे हम थामकर दिल को , इन्तजार था बिटिया के आने का सब को
कार में बैठकर पहुंचे अस्पताल को, डॉक्टर बोले होगा इनका ऑपरेशन खतरा है बच्चे की जान को
कुछ देर सोचे-समझे विचार किये , ऑपरेशन की इजाजत हम डॉक्टर को दिये
डॉक्टर था ऑपरेशन करके तैयार, इतने में नर्स ले आयी शुभ समाचार
नर्स बोली बिटिया को जन्म दिया है , मुबारक हो लक्ष्मी का आगमन हुआ है

इस तरह बिटिया को मिला नया संसार, खुशियाँ लायी वो अपरम्पार
सदियों से था जिसका इन्तजार ,पल में हो गया उसका प्रचार
किसी ने मैसेज तो किसी ने फ़ोन-कॉल से किया बधाई का संचार

चेहरा पापा के जैसा कोई कहता है , नाक मम्मी जैसी हर कोई कहता है
नन्हे-नन्हे हाथ उसके ,जन्म से ही थे सिर पे घने बाल उसके
पैदा होते ही किसी ने उसको रानी बोला , तो किसी ने छोटी शिवानी बोला
रानी है तू इस घर की , परी है तू इस पवित्र आँगन की
दुनिया की हर खुशियों पर भारी, है तेरी छोटी सी किलकारी
एक छोटी सी किलकारी ,कई चेहरों पर खुशियाँ दे गई ढेर सारी

Saturday, March 28, 2020

तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो.....................

तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो , खुद का छोड़ो अपनों का ख्याल तुम क्यों नहीं रखते हो |
बेटी -बीवी से बहुत प्यार करते हो ,फिर भी बाहर निकलकर कोरोना (CORONA ) का तोहफ़ा लाते हो | 
तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो..................... 

सुना था ,घर वालों के साथ समय बिताना चाहते हो , जब मौका मिला है तो घर से बाहर निकल जाते हो | 
दवा के बदले कोरोना घर में लाते हो , अपनों को ही तुम मौत की नींद सुला देना चाहते हो | 
अपनों को ही कंधा नहीं दे पाते हो ,थमी हुई सांसे जब कोरोना ग्रसित की अस्पताल में पाते हो | 
तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो.....................

सॉंस लेने को जगह रहती नहीं जिन दुकानों  में, उनके भी शटर बंद हो जाते है | 
ताले ,मंदिर -मस्जिद में लग जाते है , जब कोरोना के पाँव पसर जाते है | 
तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो.....................
तुम घर से बाहर क्यों निकलते हो.....................

                                                                                                   -सियाराम विश्वकर्मा